परम पूज्य गुरूवर श्री भवानी शंकर जी महाराज (चच्चा जी साहब, उरई वाले) जो कि श्री रामचन्द्र जी महाराज (लाला जी साहब) के अन्नय भक्त थे। शिष्य/साधकों के आध्यात्मिक उन्नयन तथा जनकल्याण के लिये पूज्य लाला जी साहब ने चच्चा जी साहब को दायित्व प्रदान किया था। जनकल्याण के लिए चच्चा जी साहब ने आध्यात्म को व्यवहारिक रूप प्रदान किया। जिसको पूज्य पापा जी ने व्यवहारिक आध्यात्म कहा और जनसामान्य तक प्रसारित कर दिया।
व्यवहारिक आध्यात्म में आध्यात्म मार्ग की विशद्, यौगिक जटिलतायें नहीं हैं। जैसे कुण्डलिनी को जागृत करते हुए षट्चक्र भेदन करते हुए विभिन्न कोशों को जागृत करते हुए साधनारत होकर आध्यात्मिक कल्याण प्राप्त करना। जनसामान्य के लिए यह एक दुरूह प्रक्रिया है। पूज्य गुरूदेव श्री चच्चा जी साहब ने इन साधनागत जटिलताओं का निवारण करते हुए इसे व्यवहारिक रूप में प्रस्तुत किया।
व्यवहारिक आध्यात्म में मुख्य बल केवल हृदय चक्र पर है। सदाचार के मार्ग पर चलते हुऐ साधक जब अपने ईष्टदेव द्वारा़ प्रदत्त शब्द (शब्द या मंत्र या अन्य जाप) की निरन्तर शब्द साधना करता है तो उसके हृदय में दिव्य प्रकाश जागृत हो जाता है। अभ्यास सिद्ध होने पर उसे अपने हृदय में प्रकाश पुन्ज के रूप में अपने गुरूदेव के दर्शन होने लगेगें। इस प्रकार दिव्य दृष्टि मिलने पर सारा संसार प्रकाशमय एवं प्रेममय दिखाई देने लगता है। इस प्रकार साधकों को बिना किसी यौगिक एवं साधनागत क्लिष्टिताओं एवं जटिलताओं के व्यवहारिक रूप में स्वतः आध्यात्मिक लाभ की प्राप्ति होती है एवं उनका व उनके परिजनों का आध्यात्मिक कल्याण का मार्ग सहज ही प्रशस्त होता है।
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